शेर ए शायरी 4

दोशतो मैं फिर हाजिर हु
गजब की है लेकिन शाम उदास हैं, मुझे तेरी चाहत की पयास हैं
मुदत हो गई मेरे दिल को चाहत लबाए भटकते हुए
मिलेगे हम कभी ये आस नही बिशवाश हैं



शेर कैसा होगा ये बताना जरुर


जानना तो बहुत कुछ था बाकी मगर जिनदगी दगा कर गई
सपनों की महफिल सजी हैं हकीकत तनहा रह गई
ऐ सनम तुम्हारा खयाल हर कदम पे होती हैं
तुम्हारी तनहाई मेरे रूह से आगे गुजर गई

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