Liked on YouTube: ब्राह्मणों के काल्पनिक पात्र चाणक्य का भाण्डाफोड। मौर्य काल का वास्तविक लेखक कौन है?
ब्राह्मणों के काल्पनिक पात्र चाणक्य का भाण्डाफोड। मौर्य काल का वास्तविक लेखक कौन है?
#चाणक्य_कल्पनिक_पात्र_हैं। #चपड़_है_वास्तविक OBC(पिछरों) को ध्यान में लाने की जरूरत है: #संस्कृत_भाषा_प्राकृत_के_बाद_पैदा_हुई_है। मौर्य राजाओं को संस्कृत नहीं आती थी और चाणक्य को प्राकृत नहीं आती थी। तो फिर कैसे मौर्य राजे चाणक्य से सलाह लिया करते थे ? ज्ञात सबूतों के आधार पर कहा जाएगा कि सम्राट अशोक के दरबार का सबसे बड़ा लेखक चपड़ था। ब्रह्मगिरी और जटिंग- रामेश्वर जैसे शिलालेखों को लिखने का श्रेय लेखक चपड़ को ही प्राप्त है। बाकायदे अभिलेखों के नीचे लेखक चपड़ का नाम दर्ज है। आश्चर्य है कि लेखक चपड़ का नाम किसी किताब में दर्ज नहीं है। इतिहासकारों ने मौर्यकालीन लेखकों में चाणक्य की गणना गाजे- बाजे के साथ किया है, मगर चपड़ को छोड़ दिया है। मौर्यकाल का जो ऐतिहासिक लेखक है, वह गायब है, जो अनैतिहासिक है, वहीं सिर चढ़कर बोल रहा है। जिस चाणक्य का इतिहास नहीं मिलता ऐतिहासिक सुबूत नहीं मिलते उसे स्कूल के सिलेबस में पढ़ाया जाता है और जिस मौर्यकालीन चपड़ का इतिहास मिलता है और जिसके इतिहासिक सबूत मौजूद है वह स्कूल के सिलेबस मे इतिहास के पन्नों से ही लापता है। मौर्यकालीन ब्रह्मगिरि के शिलालेख का उदहारण देते हुए प्रो राजेंद्र प्रसाद सिंह कहते है "ज्ञात सबूतों के आधार पर कहा जाएगा कि सम्राट अशोक के दरबार का सबसे बड़ा लेखक चपड़ था। इसका मतलब ये हुआ कि कहीं ब्राह्मणों ने अपने फायदे के लिए चपड़ जैसे विद्वान को ही चाणक्य तो नहीं बना दिया है? क्योंकि आज भी हमारे गावों में जब कोई बीच-बीच में अधिक बोलने लगता है तो लोग कहते है कि "ज्यादा चपड़-चपड़ ना करों"। इस कहावत का मतलब है कि "अपने ज्ञान का ज्यादा प्रदर्शन ना करों"। इस कहावत में चपड़-चपड़ ज्ञान व विद्वाता का परिचायक है। इससे स्पष्ट है कि कहावत ये जो "चपड़-चपड़" है इसका स्रोत कोई और नहीं बल्कि सम्राट अशोक के दरबार में विद्यमान रहें विद्वान चपड़ ही है। चंद्रगुप्त मौर्य के साथ उनके तथाकथित गुरु चाणक्य का नाम जोड़ना भी बुद्धिज़्म पर आधारित भारत की प्राचीनतम जीवन-शैली के अपहरण करने की साजिश का ही हिस्सा था। ये सब विदेशी ब्राह्मणों द्वारा किया गया षड्यंत्रकारी ब्राह्मणी कृत्य है बौद्ध भारत के ब्राह्मणीकरण करने की एक कामयाब लेकिन नापाक कोशिस है।
via YouTube https://youtu.be/uF5l4ahNl8o
#चाणक्य_कल्पनिक_पात्र_हैं। #चपड़_है_वास्तविक OBC(पिछरों) को ध्यान में लाने की जरूरत है: #संस्कृत_भाषा_प्राकृत_के_बाद_पैदा_हुई_है। मौर्य राजाओं को संस्कृत नहीं आती थी और चाणक्य को प्राकृत नहीं आती थी। तो फिर कैसे मौर्य राजे चाणक्य से सलाह लिया करते थे ? ज्ञात सबूतों के आधार पर कहा जाएगा कि सम्राट अशोक के दरबार का सबसे बड़ा लेखक चपड़ था। ब्रह्मगिरी और जटिंग- रामेश्वर जैसे शिलालेखों को लिखने का श्रेय लेखक चपड़ को ही प्राप्त है। बाकायदे अभिलेखों के नीचे लेखक चपड़ का नाम दर्ज है। आश्चर्य है कि लेखक चपड़ का नाम किसी किताब में दर्ज नहीं है। इतिहासकारों ने मौर्यकालीन लेखकों में चाणक्य की गणना गाजे- बाजे के साथ किया है, मगर चपड़ को छोड़ दिया है। मौर्यकाल का जो ऐतिहासिक लेखक है, वह गायब है, जो अनैतिहासिक है, वहीं सिर चढ़कर बोल रहा है। जिस चाणक्य का इतिहास नहीं मिलता ऐतिहासिक सुबूत नहीं मिलते उसे स्कूल के सिलेबस में पढ़ाया जाता है और जिस मौर्यकालीन चपड़ का इतिहास मिलता है और जिसके इतिहासिक सबूत मौजूद है वह स्कूल के सिलेबस मे इतिहास के पन्नों से ही लापता है। मौर्यकालीन ब्रह्मगिरि के शिलालेख का उदहारण देते हुए प्रो राजेंद्र प्रसाद सिंह कहते है "ज्ञात सबूतों के आधार पर कहा जाएगा कि सम्राट अशोक के दरबार का सबसे बड़ा लेखक चपड़ था। इसका मतलब ये हुआ कि कहीं ब्राह्मणों ने अपने फायदे के लिए चपड़ जैसे विद्वान को ही चाणक्य तो नहीं बना दिया है? क्योंकि आज भी हमारे गावों में जब कोई बीच-बीच में अधिक बोलने लगता है तो लोग कहते है कि "ज्यादा चपड़-चपड़ ना करों"। इस कहावत का मतलब है कि "अपने ज्ञान का ज्यादा प्रदर्शन ना करों"। इस कहावत में चपड़-चपड़ ज्ञान व विद्वाता का परिचायक है। इससे स्पष्ट है कि कहावत ये जो "चपड़-चपड़" है इसका स्रोत कोई और नहीं बल्कि सम्राट अशोक के दरबार में विद्यमान रहें विद्वान चपड़ ही है। चंद्रगुप्त मौर्य के साथ उनके तथाकथित गुरु चाणक्य का नाम जोड़ना भी बुद्धिज़्म पर आधारित भारत की प्राचीनतम जीवन-शैली के अपहरण करने की साजिश का ही हिस्सा था। ये सब विदेशी ब्राह्मणों द्वारा किया गया षड्यंत्रकारी ब्राह्मणी कृत्य है बौद्ध भारत के ब्राह्मणीकरण करने की एक कामयाब लेकिन नापाक कोशिस है।
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